संदेश

टाइटैनिक

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 टाईटेनिक जहाज समुन्द्र में डूब रहा था ,उस समय उसके आस पास तीन ऐसे जहाज़ मौजूद थे जो टाईटेनिक के मुसाफिरों को आसानी से बचा सकते थे। सबसे करीब जो जहाज़ मौजूद था उसका नाम SAMSON था और वो हादसे के वक्त टाईटेनिक से सिर्फ सात मील की दूरी पर था। SAMSON के कैप्टन ने न सिर्फ टाईटेनिक की ओर से फायर किए गए सफेद शोले (जो कि बेहद खतरे की हालत में हवा में फायर किये जाते हैं।) देखे थे, बल्कि टाईटेनिक के मुसाफिरों के चिल्लाने के आवाज़ को भी सुना था। लेकिन उस वक़्त सैमसन पर मौजूद लोग गैर कानूनी तौर पर बेशकीमती समुन्द्री जीव का शिकार कर रहे थे और नहीं चाहते थे कि पकड़े जाएं , लिहाज़ा वे अपने जहाज़ को दूसरी तरफ़ मोड़ कर भाग गए। यह जहाज़ हम में से उन लोगों की तरह है जो अपनी गुनाहों भरी जिन्दगी में इतने मग़न हो जाते हैं कि उनके अंदर से मानवता ख़तम हो जाती है। दूसरा जहाज़ जो टाइटेनिक के करीब मौजूद था उसका नाम CALIFORNIAN , जो हादसे के वक्त टाईटेनिक से चौदह मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने भी टाईटेनिक की ओर से निकल रहे सफेद शोले अपनी आखों से देखे थे । दरअसल टाईटेनिक उस वक्त बर्फ़ की चट्टानों से घि

शेर और गीदड़ - मज़ेदार कहानी

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एक शेर शिकार को जा रहा था तो उसने अपनी शेरनी से पूछा कि - "देख मेरी आंखें लाल हो गई कि नहीं?" शेरनी ने कहा-" जी हो गईं "   शेर फिर बोला - "बता मेरी पूँछ खड़ी हो गई कि नहीं ? "    शेरनी बोली -" जी!खड़ी हो गई ।"      इतना सुनकर शेर जोश मेंं चला और नदी में पानी पीते एक घोड़े का शिकार कर लाया।     एक गीदड़ ये सब दख रहा था।मन मेंं बात बैठ गई कि ये तरीका है इनके शिकार करने का।       सो दूसरे दिन अपनी गीदड़ से बोला कि -" बता मेरी आँख लाल हो गईं कि नहीं?"       गीदड़ी बोली-" नहीं तो।कहीं लाल.नहीं हुईं "      " अबे पगली कह कि हो गईं "      गीदड़ी ने डर के मारे कह दिया कि हो गईं     गीदड़ ने फिर कहा-" बता मेरी पूंछ खड़ी हुई कि नहीं "       " नहीं तो।लटक रही है " गीदड़ी बोली।      " अबे पगली कह कि हो गई "       " जी हो गई " गीदड़ी ने डर के मारे कह दिया।      गीदड़ नदी पर पहुंचा और एक घोड़े के पांव में दांत गढ़ा दिए।घोड़े ने लात मारी तो खोपड़ी फट गई।    लहुलुहान खोपड़ी लिए जब गीदड़ अपनी माँद के

आपका अंत निकट हैं।

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घने जंगल से गुजरती हुई सड़क के किनारे एक ज्ञानी गुरु अपने चेले के साथ एक साइनबोर्ड लगाकर बैठे हुए थे, जिस पर लिखा था ......“ठहरिये … आपका अंत निकट है ! इससे पहले कि बहुत देर हो जाये , रुकिए ! … हम आपका जीवन बचा सकते हैं !” एक कार फर्राटा भरते हुए वहाँ से गुजरी. चेले ने ड्राईवर को बोर्ड पढ़ने के लिए इशारा किया …लेकिन ड्राईवर ने बोर्ड की ओर देखकर भद्दी सी गाली दी और चेले से यह कहता हुआ निकल गया – “तुम लोग सुनसान जंगल में भी धंधा कर रहे हो ! शर्म आनी चाहिए !” चेले ने असहाय नज़रों से गुरूजी की ओर देखा. गुरूजी बोले – “जैसे प्रभु की इच्छा !” कुछ ही पल बाद कार के ब्रेकों के चीखने की आवाज आई और एक जोरदार धमाका हुआ. कुछ देर बाद एक मिनी-ट्रक निकला. उसका ड्राईवर भी चेले को दुत्कारते हुए बिना रुके आगे चला गया. कुछ ही पल बाद फिर ब्रेकों के चीखने की आवाज़ और फिर धड़ाम …. ! गुरूजी फिर बोले – “जैसी प्रभु की इच्छा !” अब चेले से नहीं रहा गया. बोला – “गुरूजी, प्रभु की इच्छा तो ठीक है पर कैसा रहे यदि हम इस बोर्ड पर सीधे-सीधे लिख दें कि - . . ‘आगे पुलिया टूटी हुई है’ … !!!”

राजा और संगीतकार

एक बार एक राजा के दरबार में एक संगीतकार गाना सुनाने लगा। राजा ने बहुत ख़ुश होकर एलान किया कि इसे इसके वज़न के बराबर चांदी दिया जाए। संगीतकार बहुत ख़ुश हुआ और उसने अच्छी सुरीले आवाज़ में फ़िर गीत सुनाया। राजा और ख़ुश हुआ औऱ उसने कहा कि इसको सोना से तौला जाए। संगीतकार ने और अच्छी आवाज़ में गाना शुरू किया। राजा फ़िर ख़ुश हुआ और उसने कहा इसे दस गांवों की ज़मीन भी दे दी जाए। उसके बाद वो संगीतकार अपने घर गया औऱ उसने अपनी पत्नी को पूरा किस्सा सुनाया। उसका पूरा परिवार बहुत खुश हुआ। कुछ दिन गुज़रे , फ़िर कुछ महीने भी गुजर गए लेकिन राजा ने जो चीज़ें देने का वादा किया था,उसे कुछ भी नहीं मिला।बहुत इंतज़ार करने के बाद मायूस होकर वह राजा से मिलने उसके दरबार में हाज़िर हुआ और कहा.... “हुज़ूर , आपने सोने, चांदी, हीरे मोती, ज़मीन जायदाद को लेकर जो वादे मुझसे किए थे , उसमें से एक भी चीज़ मुझे अबतक नहीं मिली "...... राजा ने मुस्कुराते हुए कहा... “अरे मूर्ख इंसान.. ये लेने देने की बातें कहाँ से आ गई रे ? तूने मेरे कान को ख़ुश किया मैंने तेरे कान को ख़ुश किया....हिसाब बराबर.....”.

उम्मीदें

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एक बार एक सेठ ने पंडित जी को अपने घर पर भोजन के लिए निमंत्रित किया , पर पंडित जी का एकादशी का व्रत था , इसलिए पंडित जी नहीं जा सके ।  लेकिन पंडित जी ने अपने दो शिष्यों को सेठ के यहाँ भोजन के लिए भेज दिया..। जब दोनों शिष्य वापस लौटे तो उनमें एक शिष्य दुखी और दूसरा बेहद प्रसन्न था! पंडित जी को देखकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा....बेटा क्यो दुखी हो -- क्या सेठ ने भोजन मे अंतर कर दिया ?  "नहीं गुरु जी"  क्या सेठ ने सम्मान देने में अंतर कर दिया ?  "नहीं गुरु जी"  क्या सेठ ने दान दक्षिणा में अंतर कर दिया ?  "नहीं गुरु जी ,बराबर दक्षिणा दी , 2 रुपये मुझे और 2 रुपये दूसरे को" । अब तो गुरु जी को और भी आश्चर्य हुआ । तब उन्होंने पूछा.....फिर क्या कारण है ? जो तुम दुखी हो ? तब दुखी चेला बोला... गुरु जी , मै तो सोचता था सेठ बहुत बड़ा आदमी है , कम से कम 10 रुपये दक्षिणा देगा , पर उसने सिर्फ़ 2 रुपये दिये , इसलिए मै दुखी हूं !! अब गुरु जी ने दूसरे से पूछा... तुम क्यो प्रसन्न हो ? दूसरा बोला... गुरु जी ,मैं जानता था , सेठ बहुत कंजूस है आठ आने से ज्यादा दक्षिणा

आपातकालीन सेवा मज़ेदार कहानी

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  कल रात शर्मा जी बगल के एक शहर से अकेले , अपनी कार से घर वापस लौट रहे थे.... तभी रास्ते में पड़ने वाली एक सुनसान घाटी में उनकी कार अचानक पंचर हो गई ।  शर्मा जी ने अपनी कार किनारे खड़ी की और टायर बदलने के लिए जैसे ही डिग्गी खोली तो उनके होश ही उड़ गए ...... वहाँ स्टेपनी तो थी ही नहीं  वो बेहद चिंता में सोच रहे थे कि अब क्या करें... तभी..... चाँद की रोशनी में उनकी नजर सामने लगे एक साइन बोर्ड पर पड़ी , उसपर लिखा था......" आपतकालीन सेवा " और उसके नीचे एक मोबाइल नम्बर भी लिखा था ... ये देख उनकी तो जैसे जान में जान आई , उन्होंने तुरन्त नम्बर डायल किया...   उधर से एक सुरीली आवाज आई  'कहिये , हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं '  शर्मा जी ने अपनी पूरी राम कहानी उसे सुनाई । वह बोली... आप बिलकुल भी चिंता न करें,हम अभी इंतजाम करते हैं ......आप आराम से कार में ही बैठें , वहाँ से कहीं जाइयेगा मत......क्योंकि .......बाहर खूँखार जंगली जानवर घूमते हैं.....! लगभग पांच मिनट बाद एक बाइक शर्मा जी के बगल में आकर रुकी ..... उसपर से दो काले कलूटे मुस्टंडे उतर कर उनके पास आये और उनकी कनपटी पर "

हम वो आखरी पीढ़ी...

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हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,  पहला चरण - कैंची  दूसरा चरण - डंडा  तीसरा चरण - गद्दी ... तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था। "कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे। और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है । आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था। हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए। अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने