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"ईदगाह" ~ मुंशी प्रेमचंद की कहानी

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मुंशी प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 ~ 8 अक्टूबर 1936) का पूरा नाम "धनपत राय श्रीवास्तव" था। उनका जन्म लमही गांव में हुआ था जो कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित है मुंशी प्रेमचन्द को कलम की सिपाही के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखे और 14 उपन्यास भी। उनके कहानियों के संग्रह मानसरोवर के नाम से जाना जाता है जो 8 खंडों में उपलब्ध है उन्हीं में से कुछ एक कहानी "ईदगाह" आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं                           ईदगाह   रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से

बड़े भाई साहब ~ मुंशी प्रेमचंद की कहानी

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मुंशी प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 ~ 8 अक्टूबर 1936) का पूरा नाम " धनपत राय श्रीवास्तव " था। उनका जन्म लमही गांव में हुआ था जो कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित है मुंशी प्रेमचन्द को कलम की सिपाही के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखे और 14 उपन्यास भी। उनके कहानियों के संग्रह मानसरोवर के नाम से जाना जाता है जो 8 खंडों में उपलब्ध है उन्हीं में से एक प्रसिद्द कहानी बड़े भाई साहब आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं                  बड़े भाई साहब मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था जब मैने शुरू किया था; लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भावना की बुनियाद खूब मजबूत डालना चाहते थे जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे। कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने! मैं छोटा था, वह बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी,वह चौदह साल ‍के थे। उन्हें मेरी तंबीह और निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था। और मेरी

महामृत्युंजय मंत्र

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 ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्  उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात्